मनुष्य को सत्कर्म क्यों करना चाहिए ?

No Comments

 

मनुष्य को सत्कर्म क्यों करना चाहिए ?

जो तू आया जगत में जगत हँसा तु रोये

              ऐसी करनी कर चलो पाछे हँसी न होये।।

 

इसका भावार्थ यह है कि जब मनुष्य जन्म लेता है तो वह रूदन करता है तो उस समय सभी आत्मीयजन बहुत खुश होते हैै, प्रसन्न होते है। परन्तु कहते हैं न कि इस मृत्यु लोक में जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना अटल है। अर्थात  मनुष्य हो या कोई भी जीव इस मृत्यु लोक से विदा लेना ही पड़ता है। इसलिये मनुष्य को अपने इस अल्पकाल के जीवन में ऐसे कर्म करनें चाहिये जिससे वह जब समय आने पर देह त्याग कर जाये तो उसके सत्कर्मांे की वजह से लोग उसे याद रखें न की उसकी हँसी उड़ायें। इसलिये मनुष्य को सत्कर्म करना चाहिए ।

मनुष्य को सत्कर्म क्यों करने चाहिए

अतः मनुष्य को हमेंशा सत्कर्म ही करनें चाहिये। तो चलिये आपको इसी से जुड़ा महाभारत कालीन ऋषि माण्डव्य से जुड़ा प्रसंग सुनातें है।

महर्षि माण्डव्य पौराणिक काल के एक महान ऋषि थे। महर्षि माण्डव्य भार्गव वंश के ऋषि थे और उनका एक नाम ’’अणीमाण्डव्य’’ भी कहा गया है।

इनके विषय में कथा का वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है। वे महर्षि मातंग और दित्तामंगलिका के पुत्र थे।

उन्होंने अल्प आयु में ही बहुत सी सिद्धियां प्राप्त कर ली थी और ऋषियों में सम्मानित हो गए। उनका एक व्रत था कि संध्याकाल के तप के समय वे मौनव्रत धारण किये रहते थे। एक बार कुछ लुटेरे लूट का बहुत सारा सामान लेकर भाग रहे थे। उनके पीछे कई राजकीय सैनिक लगे थे जिनसे बचने के लिए वे भाग कर माण्डव्य ऋषि के आश्रम में छिप गए। थोड़ी देर बाद जब सैनिक वहां आये तो उन्होंने माण्डव्य ऋषि से उन लुटेरों के विषय में पूछा।

मौन व्रत में होने के कारण उन्होंने कुछ उत्तर नहीं दिया। तब जब सैनिकों नें अंदर  जाकर देखा तो  उन्हें लूट के सामान के साथ लुटेरे भी मिल गए। उन्होंने समझा कि ये ऋषि भी इनके साथ मिले हुए हैं इसी कारण वे लुटेरों के साथ ऋषि को भी पकड़ कर ले गए और राजा के सामने प्रस्तुत किया। राजा ने भी उनसे प्रश्न किया किन्तु मौन व्रत होने के कारण माण्डव्य ऋषि कुछ नहीं बोले। राजा ने इसे उनकी स्वीकृति समझा और सभी लुटेरों के साथ उन्हें भी सूली पर चढाने का आदेश दे दिया। सूली पर चढाने से अन्य लुटेरे तो तक्षण मर गए किन्तु माण्डव्य ऋषि के तप के बल के प्रभाव से वह ’अणि’ उनका छेदन नहीं कर पाई। 

अतः शूल के अग्र भाग को ’अणि’कहते हैं और तभी से वे ’अणीमाण्डव्य’ नाम से भी प्रसिद्ध हुए।जब राजा को इस अद्भुत चमत्कार के बारे में पता चला तो तो वह स्वयं नंगे पांव महर्षि के पास आये और उन्हें सूली पर से उतारा। तब उन्होंने महर्षि से बारम्बार क्षमा मांगी। मांडव्य ऋषि ने ये सोच कर उसे क्षमा कर दिया कि राजा ने तो परिस्थिति के अनुसार न्याय किया है। इसलिये इसका कारण जानने के लिए वे यमपुरी पहुंचे कि उन्होंने कभी कोई पाप नहीं किया फिर किस कारण उन्हें ऐसा दंड भोगना पड़ा माण्डव्य ऋषि ने यमराज से पूछा कि उन्हें याद नहीं कि कभी उन्होंने कोई अपराध किया हो तो फिर किस कारण उन्हें ऐसा घोर दंड भोगना पड़ा।

इस पर यमराज ने कहा हे महर्षि! बालपन में आपने पतंगों के पृष्ठ भाग में सींक घुसा दिया था जिस कारण आपको ये दंड भोगना पड़ा।

जिस प्रकार छोटे से पुण्य का भी बहुत फल प्राप्त होता है उसी प्रकार छोटे से पाप का भी फल अधिक ही मिलता है। यह सुनकर माण्डव्य ऋषि ने यमराज से पूछा कि मैंने ये अपराध किस आयु में किया था ? तब यमराज ने उन्हें बताया कि उन्होंने ये कार्य १२ वर्ष की आयु में किया था।

इसपर माण्डव्य अत्यंत क्रोधित हो यमराज से बोले  हे धर्मराज! शास्त्रों के अनुसार मनुष्य द्वारा १२ वर्ष तक किये कार्य को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्यूंकि उस आयु में उन्हें पाप पुण्य का ज्ञान नहीं होता।

किन्तु तुमने बालपन में किये गए मेरे अपराध के कारण मुझे इतना बड़ा दंड दिया इसीलिए मैं तुम्हे श्राप देता हूँ कि तुम्हारा मनुष्य योनि में शूद्र वर्ण में एक दासी के गर्भ से जन्म होगा तथा तुम्हारे सामने अन्याय होगा और सक्षम होते हुए भी तुम उसका प्रतिकार नहीं कर पाओगे। माण्डव्य ऋषि के श्राप के कारण ही धर्मराज द्वापर में महर्षि वेदव्यास की कृपा से अम्बा की दासी पारिश्रमी के गर्भ से विदुर के रूप में जन्में। वे अपने काल के महान राजनीतिज्ञ और हस्तिनापुर के महामंत्री बनें।

तथा अनेकों बार उनके सामने ऐसी स्थितियां प्रकट हुई कि उनके समक्ष बार बार धर्म यानि कि पाण्डवों के साथ अन्याय हुआ और वे केवल मूकदर्शक बने रहे और कुछ कर न सके किन्तु फिर भी उन्होने धर्म रूपी पाण्डवों की कई बार रक्षा कि थी।

      मनुष्य को सत्कर्म क्यों करने चाहिए ? जानते हैं इन महत्वपूर्ण बिन्दुओ से:- 

  • हम अगर सत्कर्म करेंगे तो  समाज में सद्भावना बढ़ेगी तथा  साथ ही समृद्धि और सामृद्धि का संवर्धन होगा । 
  • सत्कर्म करने से मनुष्य के  चरित्र निर्माण होगा तथा  उसके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान में बढ़ोतरी होगी ।
  • हमारे द्वारा सत्कर्म करने से अपने आसपास के लोगों को प्रेरित किया जा सकता है, जिससे कि  समाज में सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है।
  • सत्कर्म करने से मनुष्य का जीवन उदार और संतुलित बनेगा , जिससे उसकी आत्म-संतुष्टि बढ़ती है।
  • सत्कर्म करने से मनुष्यों में  दुःख और दुर्भावना की कमी  होगी और मनुष्य  को आनंद और शांति मिलेगी ।
  • समाज में सत्कर्म करने से संबंधों में स्नेह और सहानुभूति का वातावरण उत्पन्न होगा , जिससे समूचा समाज एकजुट होगा ।
  • सत्कर्म करने से हमारी धार्मिक और नैतिक उन्नति होगी , जो मनुष्य को आत्मा के विकास की दिशा में आगे बढाएगी

।। जय श्री राधे ।।

More from our blog

See all posts

Leave a Comment