कर्तापन या कर्तव्यनिष्ठा

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कर्तव्यनिष्ठा का महत्व क्या है

कर्तव्यनिष्ठा का महत्व क्या है

इस संसार में प्राय यह देखा गया है की व्यक्ति अपने जीवन में हर अच्छे काम का श्रेय स्वयं को देता है और उसके द्वारा होने वाले हर बुरे काम का श्रेय भगवान को दे देता है। यह बात हास्यप्रद प्रतीत होती है।
इंसान की यही फितरत उसके दुःख का कारण बनती है क्युकी उसके मन में कर्तापन का अभिमान होता है वह यही समझता है की जो कुछ वह कर रहा है वही कर रहा है और यही अभिमान उसे जनम जन्मांतर के जाल में उलझा देती है।
इस बात को एक छोटे से संवाद के माध्यम से समझा जा सकता है, परन्तु इस संवाद को विद्वानों ने अपने अपने तरीके से समझाया है।

एक समय की बात है अकबर की सेना में सेनापति के पद पर काम करने वाले रहीम दास जी जो एक अच्छे कवि होने के साथ साथ दानवीरता के लिए भी प्रसिद्ध थे परन्तु दान देने का उनका तरीका बहुत अलग था रहीमदास जी नीचे नैन करके दान देते थे और यह बात जब तुलसीदास जी को पता चली तो उन्होंने रहीमदास जी को ख़त लिखा और कहा कि:-

ऐसी देनी देन जूं कित सीखे हो सेनं
यों ज्यों कर ऊँचो करे त्यों त्यों नीचे नैन

तुलसी दास जी कहते है की हे नायक दान देने का ऐसा तरीका कहाँ से सीखा है जेसे जेसे आप दान देने के लिए हाथ ऊँचे करते है वेसे वेसे आपके नैन नीचे हो जाते है।
तब रहीमदास जी ख़त का जवाब देते हुए कहते हैं कि:-

देनहार कोई और है जो देवत है दिन रैन
लोग भरम हम पर करें तासों नीचे नैन

देनहार मतलब देने वाला तो वो परमारत्मा है जो दिन और रात देता ही रहता है परन्तु लोगो को इस बात भ्रम होता है की दान मै दे रहा हूँ लेकिन ये सत्य नहीं है। लोगो के इस भ्रम पर मुझे शर्म आती है
मुझे तो बस उस परमात्मा ने एक जरिया बना रखा है सब कुछ करने वाला तो वो ईश्वर है।
इस कथा का सन्देश तो बस इतना है की जब इंसान इस अभिमान को अपने मन में लिए रखता है तो वो उसे प्रभु से दूर कर देती है क्युकी अपने बल से कोई नहीं बढता है प्रभु के बल से बढता है।

कर्तव्यपन का अभिमान एक धारणा के बारे में आपने ऊपर पढ़ा है। अब हम आपको इसकी एक दूसरी अवधारणा से भी अवगत करवातें है।

कर्तापन या कर्तव्यनिष्ठा, मनुष्य के जीवन का एक महत्वपूर्ण गुण है जो उसे सफलता के शिखर तक पहूंचने में बहुत मदद मिलती है। कर्तापन एक प्रकार की वह भावना है, जिसमें मनुष्य अपने द्वारा किये जाने वाले कर्तव्यों के निर्वहन में पूर्ण विश्वास रखता है। कार्य करने का जज्बा और समर्पण ही सही मायनों मे कर्तापन का सही अर्थ है। यह एक सच्चा आदर्श है जो व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने में मदद करता है।

अब हम बात करतें हैं कर्तापन का अभिमान कि जो एक हद तक मेरे हिसाब से जरूरी भी है क्योंकि यह उस भावना का प्रतिनिधित्व करता है जिसके विश्वास से उसके मन में उत्कृष्टता की भावना पैदा होती है, जिससे उसे संघर्षों और चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है।

कर्तापन के अंतर्निहित गुण से मनुष्य को उसके कार्यों में सही दिशा मिलती हैं। यह उसे सामाजिक और नैतिक मानकों के अनुसार चलने में मदद करती है, जिससे उसके मान और सम्मान में अभिवृद्धि और समृद्धि होती है।

कर्तव्यनिष्ठ मनुष्य यह बहुत अच्छे से समझता है कि सफलता का रास्ता कभी भी आसान नहीं होता। यह उसे उसकी मेहनत और समर्पण के बाद ही उसे मिलती है तथा उसकी मेहनत और समर्पण ही उसे उसके लक्ष्य की प्राप्ति में परिश्रम करने के लिए प्रेरित करती है।

कर्तापन मनुष्य को समर्थ और सशक्त बनाता है। जिससे वह स्वावलंबी बनता है और उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता होती है। इस भावना के साथ, मनुष्य संघर्षों का सामना करने की क्षमता विकसित करता है और अंततः अपने लक्ष्यों को हासिल करता है।

संक्षेप में कहें तो, कर्तव्यनिष्ठता व्यक्ति को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह उसे सही मार्ग पर चलने में मदद करती है और उसे अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित करती है। इसलिए हमें कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए तथा कर्तव्यनिष्ठता को अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण भाग बनाना चाहिए।

कर्तव्यनिष्ठा का महत्व क्या है इसे हम कुछ आसान से बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते है।

  • कर्तापन या कर्तव्यनिष्ठा में मनुष्य अपने कर्तव्यों को सजगता से निभाता है।
  • इस प्रकार की भावना मनुष्य को उसके कार्यों और निर्णयों के लिए जिम्मेदार बनाती है।
  • इसे समाज में सामाजिकता और नैतिकता की उच्चतम प्रणाली माना जाता है।
  • कर्तापन या कर्तव्यनिष्ठा में मनुष्य का काम उसके कर्तव्यों और नैतिक मूल्यों के आधार पर होता है।
  • कर्तव्यनिष्ठा से मनुष्य समाज में सहयोगी बनता है और सामाजिक समर्थन प्राप्त करता है।
  • इसके माध्यम से मनुष्य अपने परिवार, समाज, और देश के प्रति निष्ठा और समर्पण का प्रतीक बनता है।
  • यह मनुष्य को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है तथा उसे अपनी साधनाओं में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
  • कर्तव्यनिष्ठा से मनुष्य अपने संबंधों में समर्पितता और सहयोग की भावना विकसित करता है।

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