सर्वमिदम्
सर्वमिदम् दो शब्दों सर्वम् और इदम् से मिलकर बना है, जो सनातन के पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवद गीता के एक श्लोक से लिया गया है, जिसका अर्थ है "सर्वव्यापी"।
चारों युगों में से तीन युगों में भगवान की प्राप्ति व दर्षन कठोर तपस्या द्वारा ही प्राप्ति सम्भव थी। जबकि कलियुग में केवल भगवान का कीर्तन कर के भगवान की प्राप्ति व दर्षन प्राप्त किये जा सकते है तथा परम गति प्राप्त करने का सहज ही कलियुग में कीर्तन साधन है।
‘‘कलियुग केवल नाम आधारा सुमीर-सुमीर नर उतरे पारां‘‘
कहानी :-
यह कहानी संतों की भूमि कहे जाने वाले राजस्थान के अलवर जिले के छोटे से कस्बे राजगढ़ से शुरू होती है, जहां मेरा जन्म हुआ।
जैसा कि मेरी मां ने मुझे बताया था कि जब मैं पैदा हुआ था, तो मेरी दादी मेरे कान के पास आईं और कुछ फुसफुसाए। जब मैंने उससे इसके बारे में पूछा तो उसने कहा. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
तो किसी ने बहुत खूबसूरत बात कही है.
भक्ति भाव से नहीं उपजे हरि भक्ति के अंश।
हिरण्याकुश प्रहलाद जन्मयो उग्रसेन घर कंस।।
कहने का तात्पर्य यह है कि संसार में अपने भक्तों की रक्षा करने और दुष्टों का विनाश करने तथा भक्ति का प्रचार करने के लिए भगवान ने समय-समय पर अवतार लिए और पापियों के घर में भक्तों ने जन्म लिया।
यह भगवान सच्चिदानंद की कृपा है कि भगवान की भक्ति का बीज मेरे हृदय में है। और उसी का परिणाम है कि आज मैंने उसी बीज को अंकुरित करके "सर्वमिदम्" के रूप में आपके सामने प्रस्तुत किया है।
उद्देश्य :-
"सर्वमिदम" शुरू करने का मेरा उद्देश्य हमारी युवा पीढ़ी को हमारी प्राचीन संस्कृति से अवगत कराना और उनमें अच्छे मूल्यों के बीज बोना है, जो कुरीतियों का शिकार हो रहे हैं और अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूल रहे हैं।
इसके माध्यम से हम भारत के विभिन्न संत-महात्माओं आदि की जीवनियाँ तथा उनसे जुड़ी कुछ भक्तिमय कहानियों का वर्णन करेंगे।